Thursday 18 August 2016

धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं | Dharma Is Not 'Religion'

हमारा हिंदू धर्म, सनातन धर्म है..
सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। 
लेकिन सनातन धर्म के लिये रिलिजन शब्द का प्रयोग करना अनुचित है क्योंकि अन्ग्रेजी के रिलीजन शब्द से विश्वास का भाव सूचित होता है लेकिन विश्वास तो कभी भी परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म परिवर्तित नहीं होता.. भगवान सनातन हैं और भगवान का दिव्य धाम, जो नित्य चिन्मय आकाश से परे है, यह भी सनातन है और जीव(आत्मायें) भी सनातन हैं, आत्मा कभी नहीं मरती । तो  सनातन जीव द्वारा, सनातन धाम में स्थित सनातन भगवान की संगति करना ही मानव जीवन की सार्थकता है ।

भगवान जीवों पर अत्यंत दयालु रहते हैं क्योंकि जीव उनके आत्मज हैं । भगवान घोषित करते हैं सर्व योनिषु कौन्तेय संभवंति मूर्तयो या: (भगवद्गीता १४।४) । प्रत्येक जीवात्मा इस संसार में किसी न किसी रूप में विचर रही है, हर प्रकार का जीव इस संपूर्ण ब्रह्मांड में उपस्थित है... अपने अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के जीव हैं, लेकिन भगवान कहते हैं कि वे सबके पिता हैं, अतएव भगवान अवतरित होते हैं उन समस्त पतित बद्ध(माया में फंसे)-जीवों का उद्धार करने वापस सनातन-धाम ले जाने के लिए, उन जीवात्माओं को नित्य चिन्मय बनाने व स्वयं में मिलाने के लिये, जिससे सनातन जीव भगवान की नित्य संगति में रहकर अपने सनातन स्थिति को पुन: प्राप्त कर सकें । भगवान स्वयं नाना अवतारों के रूप में अवतरित होते हैं । वे अपने विश्वसनीय सेवकों को अपने पुत्रों या पार्षदों या आचार्यों , साधु-संत जन के रूप में इन बद्धजीवों का उद्धार करने के लिए भेजते हैं।

अतएव सनातन-धर्म किसी सांप्रदायिक धर्म पद्धति का सूचक नहीं है । यह तो नित्य परमेश्वर के साथ नित्य जीवों के नित्य कर्म - धर्म का सूचक है । जहॉ तक सनातन-धर्म का इस प्रकृया से संबंध है, जिसका अर्थ है नित्य कर्म-धर्म। श्रीपाद रामानुजाचार्य ने सनातन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है " वह जिसका न आदि है और न अन्त ।" अतएव जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण के इस आधार पर कि इसका न आदि है न अन्त। अंग्रेजी का "रिलीजन" शब्द सनातन-धर्म से थोड़ा भिन्न है । रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है पर विश्वास तो परिवर्तित भी हो सकता है । किसी को एक विशेष विधि में विश्वास हो सकता है और वह इस विश्वास को बदल कर दूसरा विधान ग्रहण कर सकता है । लेकिन सनातन-धर्म उस धर्म का सूचक है जो बदला नहीं जा सकता है । उदाहरणार्थ पानी और तरलता । तरलता पानी से विलग की नहीं जा सकती है । अग्नि और ऊष्मा । ऊष्मा विलग नहीं की जा सकती है अग्नि से । इसी तरह, जीव से उसके नित्य कर्म को विलग नहीं किया जा सकता है, जो सनातन-धर्म के रूप में जाना जाता है । इसे बदलना संभव नहीं है । हमें पता लगाना होगा कि जीव का नित्य धर्म क्या है ।

जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं, तो श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण से स्पष्ट है कि सनातन धर्म का न तो आदि है न ही अन्त। जिसका आदि -अंत न हो, वह सांप्रदायिक नहीं हो सकता न उसे किसी सीमा में बॉधा जा सकता है । जब सनातन-धर्म पर सम्मेलन होते  हैं तो जो लोग किसी सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है वे समझने में भूल कर सकते हैं कि हम कुछ सांप्रदायिक बात कर रहे हैं। किन्तु यदि हम इस विषय पर गम्भीरता से विचार करें व विज्ञान के प्रकाश में सोचें हमें यह समझने में आसानी होगी कि सनातन-धर्म विश्व के समस्त लोगों का ही नहीं, अपितु ब्रह्मांड के समस्त जीवों का है । भले ही असनातन धार्मिक विश्वासों का मानव इतिहास के पृष्ठों में कोई आदि हो, लेकिन सनातन धर्म के इतिहास का तो कोई आदि नहीं होता है, क्योंकि यह समस्त जीवों के साथ शाश्वत चलता रहता है । जहॉ तक जीवों का सम्बन्ध है, प्रमाणिक शास्त्रों का कथन है, कि जीव (आत्मा) का न तो कोई जन्म होता है, न मृत्यु । भगवद्- गीता में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जीव न तो जन्मता है न कभी मरता है । वह शाश्वत तथा अविनाशी है, और इस क्षणभंगुर शरीर के नष्ट होने के बाद भी रहता है । इसलिये धर्म का अर्थ रिलीजन बिलकुल भी नहीं है |
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